अतिदुर्लभ श्री राम तांडव स्तोत्र:

अतिदुर्लभ श्री राम तांडव स्तोत्र

राम तांडव स्तोत्र संस्कृत के राम कथानक पर आधारित महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् से उद्धृत है। इसमें प्रमाणिका छंद के बारह श्लोकों में राम रावण युद्ध एवं इंद्रआदि देवताओं के द्वारा की गई श्रीराम स्तुति का वर्णन है।

तपस्या में लीन अवस्था में श्रीभागवतानंद गुरु को स्वप्न में श्रीरामचंद्र जी ने शक्तिपात के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति का उद्बोधन कराया एवं बाद में उन्हें भगवान शिव ने श्रीरामकथा पर आधारित ग्रन्थ श्रीराघवेंद्रचरितम् लिखने की प्रेरणा दी। 

इस स्तोत्र की शैली और भाव वीर रस एवं युद्ध की विभीषिका से भरे हुए हैं।

कहा जाता है कि इतिहास में युगों युगों तक सबसे भीषण युध्द भगवान श्री राम और रावण का ही हुआ था।

ताण्डव का एक अर्थ उद्धत उग्र संहारात्मक क्रिया भी है।रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध के समान घोर तथा उग्र युद्ध कोई नहीं है। 

इसीलिये यह भी कहा जाता है

"रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव"

(राम रावण के युद्ध की तुलना  सिर्फ राम- रावण  युद्ध  से ही हो सकती है)

श्रीराम तांडव स्तोत्रम्

इंद्रादयो उवाच:

जटाकटाहयुक्तमुण्डप्रान्तविस्तृतम् हरे:
अपांगक्रुद्धदर्शनोपहार चूर्णकुन्तलः।
प्रचण्डवेगकारणेन पिंजलः प्रतिग्रहः
स क्रुद्धतांडवस्वरूपधृक् विराजते हरि: ॥१॥

अथेह व्यूहपार्ष्णिप्राग्वरूथिनी निषंगिनः
तथांजनेयऋक्षभूपसौरबालिनन्दना:।
प्रचण्डदानवानलं समुद्रतुल्यनाशका:
नमोऽस्तुते सुरारिचक्रभक्षकाय मृत्यवे ॥२॥

कलेवरे कषायवासहस्तकार्मुकं हरे:
उपासनोपसंगमार्थधृग्विशाखमंडलम्।
हृदि स्मरन् दशाकृते: कुचक्रचौर्यपातकम्
विदार्यते प्रचण्डतांडवाकृतिः स राघवः ॥३॥

प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणम्
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम्।
तथागुणंगुणंगुणंगुणंगुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलंघ्यमीशमेक राघवं भजे ॥४॥

सवानरान्वितः तथाप्लुतम् शरीरमसृजा
विरोधिमेदसाग्रमांसगुल्मकालखंडनैः।
महासिपाशशक्तिदण्डधारकै: निशाचरै:
परिप्लुतं कृतं शवैश्च येन भूमिमंडलम् ॥५॥

विशालदंष्ट्रकुम्भकर्णमेघरावकारकै:
तथाहिरावणाद्यकम्पनातिकायजित्वरै:।
सुरक्षिताम् मनोरमाम् सुवर्णलंकनागरीम्
निजास्त्रसंकुलैरभेद्यकोटमर्दनम् कृतः ॥६॥

प्रबुद्धबुद्धयोगिभिः महर्षिसिद्धचारणै:
विदेहजाप्रियः सदानुतो स्तुतो च स्वस्तिभिः।
पुलस्त्यनंदनात्मजस्य मुण्डरुण्डछेदनम्
सुरारियूथभेदनं विलोकयामि साम्प्रतम् ॥७॥

करालकालरूपिणं महोग्रचापधारिणम्
कुमोहग्रस्तमर्कटाच्छभल्लत्राणकारणम्।
विभीषणादिभिः सदाभिषेणनेऽभिचिन्तकम्
भजामि जित्वरम् तथोर्मिलापते: प्रियाग्रजम् ॥८॥

इतस्ततः मुहुर्मुहु: परिभ्रमन्ति कौन्तिकाः
अनुप्लवप्रवाहप्रासिकाश्च वैजयंतिका:।
मृधे प्रभाकरस्य वंशकीर्तिनोऽपदानतां
अभिक्रमेण राघवस्य तांडवाकृते: गताः ॥९॥

निराकृतिं निरामयं तथादिसृष्टिकारणम्
महोज्ज्वलं अजं विभुं पुराणपूरुषं हरिम्।
निरंकुशं निजात्मभक्तजन्ममृत्युनाशकम्
अधर्ममार्गघातकम् कपीशव्यूहनायकम् ॥१०॥

करालपालिचक्रशूलतीक्ष्णभिंदिपालकै: 
कुठारसर्वलासिधेनुकेलिशल्यमुद्गरै:।
सुपुष्करेण पुष्करांच पुष्करास्त्रमारणै:
सदाप्लुतं निशाचरै: सुपुष्करंच पुष्करम् ॥११॥

प्रपन्नभक्तरक्षकम् वसुन्धरात्मजाप्रियम्
कपीशवृंदसेवितं समस्तदूषणापहम्।
सुरासुराभिवंदितं निशाचरान्तकम् विभुं
जगद्प्रशस्तिकारणम् भजेह राममीश्वरम् ॥१२॥

इति श्रीभागवतानंद गुरुणा विरचिते श्रीराघवेंद्रचरिते इन्द्रादि देवगणै: कृतं श्रीराम तांडव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

समस्त प्रकार के दुःख, भय शोक एवं संताप को हरने वाला यह स्तोत्र बेहद उग्र है।

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